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क्षमा मुझे नही मालूम…….

kahunga
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तीन जून को बाबा रामदेव और अन्ना एक साथ कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सांकेतिक अनशन करते है,4 जून को बाबा रामदेव बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिलते हैं, गडकरी बाबा रामदेव का आत्मीय स्वागत करते हैं..गडकरी बाबा के चरण भी छुते हैं…4 जून को ही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पीएम का बचाव करती है और विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद बताती है..ये सभी घटनाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं…
अरे एक बात और , सोनिया गांधी ने अभी से ही 2014 के आम चुनावों के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को तैयारी करने और गुटबाजी छोड़कर पार्टी को मजबूत करने का संदेश कठोर रुख के साथ दिया…देश में आम नागरिकों के सामने राजनीतिक संकट की स्थिति हैं…दूसरे शब्दों में कहे तो बेहतर होगा कि आम मतदाता मौजूदा सरकार के कार्यकाल में बढ़ती मंहगाई और नित नए होने वाले घोटालों की खबर से परेशान है..पिछले साल जून में बाबा रामदेव को पूरे देश से समर्थन मिला..पर बाबा उस जन-समर्थन का पूरा उपयोग नहीं कर पाए..इसके बाद अन्ना हजारे के नेतृत्व में देश का मध्यम वर्ग और युवा सड़कों पर उतरा,दुर्भाग्य से इस उर्जा का भी टीम अन्ना उतना इस्तेमाल नहीं कर पाई..जितना करना चाहिए था…अब बात राजनीतिक परिदृश्य की…मौजूदा सरकार कितनी असफल है इसका आंकलन सभी कर रहे है…बीजेपी अगले आम चुनाव में इस राजनीतिक शून्यता का कितना लाभ उठा पाती है,इसमें संदेह हैं…कांग्रेस वेंटिलेटर में हैं….कांग्रेस के पास एकमात्र तुरुप का पत्ता हैं राहुल गांधी,यह पत्ता भी बिहार और यूपी में नहीं चल पाया….बीजेपी में अगला चुनाव किसके नेतृत्व में होगा ये भी साफ नहीं हैं..तो अब आखिर जनता क्या करें..जब देश का प्रधानमंत्री प्रख्यात अर्थशास्त्री हो और देश की अर्थव्यवस्था ही पटरी से उतर जाए..तो इसमें किसका दोष….अगर संसद जैसी सम्मानित संस्था, जनता की भावनाओं की कद्र न करे तो आखिर जनता ,अन्ना या रामदेव को आशाभरी निगाहों से नहीं देखे तो क्या करें….
बाबा रामदेव व्यापारी या सन्यासी ये बहस का मसला है पर जंतर-मंतर पर हुए आंदोलन से एक बात तय है कि आने वाले समय में जन-आंदोलनों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी….बीजेपी इन जन-आंदोलनों के परिणाम को अपने पक्ष में आता देख सकती है…पर ये राह भी उतनी आसान नहीं हैं…रही बात कांग्रेस की तो…..किन उपलब्धियों के सहारे कांग्रेस जनता के दरबार में जाएगी…और जनता का क्या रुख होता है ये भी देखना दिलचस्प होगा…ऐसा नहीं है कि सरकार ने कुछ नही किया…पर ये भी सच है कि जितनी अपेक्षा सरकार से की गई..उस लिहाज से सरकार पासिंग मार्क भी लाने के लिए जद्दोजहद करती नजर आ रही हैं…
खैर ये तो मेरी अल्पबुद्धि का विश्लेषण है….पर ये सौ फीसदी सत्य है कि देश की स्थिति उतनी संतोषप्रद नहीं है जितनी होनी चाहिए..देश में कई सवाल और समस्याएं अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं..पर देश के पास इनके लिए समय नहीं है.भ्रष्टाचार,माओवाद,फसलों की बर्बादी,स्वास्थ्य और शिक्षा में बदहाली जैसे तमाम मुद्दे हैं पर देश की संसद 60 साल पहले बने कार्टूनों पर समय खराब करती हैं…समाजवादी देश में पूंजीवाद की बहार है…धर्मनिरपेक्ष देश में पंथ निरपेक्षता का मतलब तुष्टिकरण बन जाता हैं..लोग भूखे मर रहे हैं …अनाज सड़ रहा हैं…
कहां कमी रह गई…और अब क्या हल है….क्षमा मुझे नही मालूम…….

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